Reviews
oi-Neeti Sudha
निर्देशक- अपूर्व सिंह कार्की
कलाकार- मनोज बाजपेयी, विपिन शर्मा, आद्रीजा रॉय, सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ
प्लेटफॉर्म- ज़ी5
“सिर्फ एक बंदा काफी है” के बेहतरीन दृश्यों में से एक है जब सोलंकी (मनोज बाजपेयी) छत पर पीड़िता लड़की को अपने विरोधियों के खिलाफ लड़ने के लिए मनाने की कोशिश करता है। वह कहता है कि अब दुपट्टे के पीछे अपना चेहरा छिपाने का समय नहीं है, बल्कि समय है इसे अपनी कमर में जोर से बांधने और मां काली की तरह लड़ने का।
वास्तविक जीवन की घटनाओं से प्रेरित, यह जोधपुर में एक सत्र न्यायालय के वकील की कहानी है, जो एक पॉवरफुल बाबा द्वारा यौन उत्पीड़न की गई एक नाबालिग लड़की को न्याय दिलाने के लिए पांच साल की लंबी लड़ाई लड़ता है। ‘बंदा’ की कहानी आसाराम बापू के केस से प्रेरित है। फिल्म में मनोज बाजपेयी एडवोकेट पीसी सोलंकी का किरदार निभा रहे हैं, जिन्होंने निडरता के साथ 16 वर्षीय लड़की को न्याय दिलाया था।

कहानी
चूंकि इस घटना से जुड़ी कई कड़ियां हम सभी जानते हैं इसीलिए कहानी जानी पहचानी लगेगी। लेकिन निर्देशक ने पटकथा को इतना कसा हुआ रखा है कि फिल्म एक सेकेंड के लिए आपका ध्यान नहीं भटकाती है। फिल्म की कहानी साल 2013 से शुरु होती है, जब एक नाबालिग लड़की देश के जाने माने बाबा (सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ) के खिलाफ बालात्कार का केस दर्ज कराती है। मामला कोर्ट तक पहुंचता है जहां एक तरफ बाबा को बचाने के लिए हैं शर्मा जी (विपिन शर्मा) और दूसरी ओर हैं पीसी सोलंकी (मनोज बाजपेयी)। जब करोड़ों अनुयायियों वाले बाबा को कटघरे तक आना पड़ता है, तो आप समझ जाते हैं कि ये कोर्टरूम ड्रामा सिर्फ दिमागी लड़ाई नहीं होगी, बल्कि उग्र और हिंसात्मक भी होगी। पीसी सोलंकी बाबा के खिलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत केस लड़ता है। इस बीच कई गवाह देने वालों की हत्या कर दी जाती है, सोलंकी को मारने और धमकाने की कोशिश की जाती है। लेकिन वो पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए 5 सालों तक ये केस लड़ता है.. और अंततः बाबा को आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है।
निर्देशक व तकनीकी पक्ष
“सिर्फ एक बंदा काफी है” जैसी फिल्म को दो घंटों तक प्रभावी बनाए रखने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी लेखक पर होती है। इस मामले में दीपक किंगरानी ने दमदार काम किया है। उन्होंने फिल्म के संवाद को बहुत मजबूत रखा है, चाहे वह अदालत के अंदर हो या बाहर। खास बात है कि फिल्म बालात्कार जैसे विषय पर आधारित है, लेकिन लेखक- निर्देशिक की जोड़ी ने इसे बेहद संवेदनशीलता के साथ दिखाया है। फिल्म में कहीं भी ओवर- द-टॉप ड्रामा नहीं है। ना ही किसी भी तरह से क्राइम को सनसनीखेज बनाने की कोशिश की गई है। समीर कोटियन का संपादन काफी चुस्त है, जो अंत तक फिल्म को बांधकर रखता है। फिल्म के कुछ दृश्य भावुक करते हैं, जबकि क्लाईमैक्स सीन रोंगटे खड़े कर देगा।
अभिनय
इस फिल्म का सबसे दमदार पक्ष है परफॉर्मेंस। पीसी सोलंकी एक साधारण व्यक्ति हैं, जिनके किरदार में मनोज बाजपेयी को कास्ट करना निर्देशक का बेस्ट फैसला रहा। सुबह स्कूटर स्टार्ट कर कोर्ट जाते मनोज बाजपेयी आपको सीधा किरदार से जोड़ते हैं। उन्होंने अपने करियर में एक से बढ़कर एक परफॉर्मेंस दिये हैं.. और ये फिल्म भी अब उस लिस्ट में शामिल हो चुकी है। वह एक दृश्य में आत्म विश्वास से भरपूर दिखते हैं, तो दूसरे में डरते भी हैं, एक पल में भावुक होते हैं, तो दूसरे में क्रोधित भी होते हैं। मनोज बाजपेयी किरदार की बारीकियों को पकड़ने में माहिर हैं। फिल्म में आसाराम मामले के दिग्गज वकीलों के असल नाम तो नहीं लिए गए हैं, लेकिन राम जेठमलानी, सुब्रमणियन स्वामी और सलमान खुर्शीद से प्रेरित किरदारों को दिखाया गया है। बचाव पक्ष के वकील के रूप में विपिन शर्मा अपने किरदार में बेहतरीन हैं। वहीं, बाबा के किरदार में सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ ने भी अच्छा काम किया है। नाबालिग लड़की का किरदार निभाया है अद्रीजा रॉय ने, जिन्हें कुछ दमदार भावुक करने वाले सीन मिले हैं और उन्होंने किरदार के साथ न्याय किया है।
रेटिंग
इस वीकेंड यदि ओटीटी पर कुछ दमदार देखने की इच्छा रखते हैं, तो मनोज बाजपेयी अभिनीत ये फिल्म जरूर देंखे। “सिर्फ एक बंदा काफी है” को फिल्मीबीट की ओर से 4 रेटिंग। फिल्म ज़ी5 पर स्ट्रीमिंग के लिए उपलब्ध है।
English summary
Manoj Bajpayee starrer courtroom drama Sirf Ek Bandaa Kaafi Hai is streaming on Zee5 from 23rd May 2023. Manoj Bajpayee is exceptional in this must watch courtroom drama.
Story first published: Tuesday, May 23, 2023, 3:38 [IST]